Monday, December 29, 2014

इस आसमाको छत की जरूरत नहीं है ।


इस आसमाको छत की जरूरत नहीं है ।
कभी धुप तो कभी छाव है ।
कभी बरसात तो कभी कड़कड़ाती सर्द है ।
जिंदगी बस इसी तरह बौछावर है।

इस आसमाको छत की जरूरत नहीं है ।
कभी निंद आती है तो ख्वाब भी आ जाते है ।
क्यूँ ख्वाबो मैं बसी जिंदगी हसीन है तू ।
पलके खुली तो कितनी कमसिन है तू।
मगर ऐसा अहसास होता है की ख़्वाब ही तो चलाते है जिंदगी को ।
ख़्वाब ही तो है जिंदगी ।

इस आसमाको छत की जरूरत नहीं है ।
चलानेसे चलना हमेशा जरुरी होता है।
यह सफर तो बड़ा आसान होता है ।
आसमाँ की बूंदो को सागर मैं समाना होता है ।
सागर की बूंदो को भी तो आसमाँ मैं जाना होता है ।


-- Amol Nakve

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